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© कविता कोश हिन्दी काव्य को इंटरनैट पर एक जगह लाने का एक अव्यावसायिक और सामूहिक प्रयास है। इस वैबसाइट पर संकलित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार रचनाकार या अन्य वैध कॉपीराइट धारक के पास सुरक्षित हैं। इसलिये कविता कोश में संकलित कोई भी रचना या अन्य सामग्री किसी भी तरह के सार्वजनिक लाइसेंस (जैसे कि GFDL) के अंतर्गत उपलब्ध नहीं है। © Poems collected in Kavita Kosh are copyrighted by the respective poets and are, therefore, not available under any public, free or general licenses including GFDL
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» अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
Friday, January 29, 2010
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- एक २२ साल का युवा जिसे देशभक्ति की सोच हासिल है तभी आर्मी ज्वाइन करने की चाह जगी लेकिन फिजिकल में असफल होने के बाद वापस पढ़ रहा है और अब एक नई सोच नेवी ज्वाइन करने की शोक लिखना ,पढना और सोच की गह्रइयो में ख़ुद को झोककर मोती निकाल लाना और इसमें सफल होने की चाह
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मुखपृष्ठ » रचनाकारों की सूची » रचनाकार: हरिवंशराय बच्चन » आज तुम मेरे लिये हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।
मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।
रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।
वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।
मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।