लखनऊ। हिन्दुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में चमड़े के बने जूते, बेल्ट और टोपी की मांग बहुत ज्यादा है, लेकिन इन्हें इस्तेमाल करने वाले यह नहीं जानते कि चमड़ा निकालने के लिये जानवरों की हड्डियों के जोडों को चटकाया जाता है और उन्हें उल्टा लटका कर उनकी गर्दन काट दी जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार चमड़े के लिये दुनिया भर में हर सेकेंड 70 से अधिक गाय, भैंस, सुअर, भेड़ और अन्य जानवरों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।
‘फैशन सप्ताह’ में चमड़े के विकल्पों पर जोर
ज्यादातर चमडा गाय, भैंस, भेड, बकरी आदि की खाल से बनाया जाता है। इसके अलावा घोडा, सुअर, मगरमच्छ, सांप और अन्य जानवरों की खालें भी चमडे के स्त्रोत हैं। एशिया के कुछ हिस्सों में चमडे की खातिर कुत्तों और बिल्लियों को भी मारा जाता है। चमडा और उससे बने सामान खरीदते समय यह नहीं बताया जा सकता कि यह किस जानवर से बना है। चमड़े की खातिर गाय और भैंस के सींग तोड दिये जाते हैं और उन्हें भूखा प्यासा रखा जाता है।
पशुओं पर क्रूरता के खिलाफ काम कर रही अंतर्राष्ट्रीय संस्था पीपुल फार एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनिमल (पेटा) ने लोगों से चमडे के बजाय वनस्पतियों से बने जूते, बेल्ट और टोपी का इस्तेमाल करने की अपील की है। वनस्पतियों से बने सामान चमडे की अपेक्षा साठ से सत्तर प्रतिशत तक सस्ते होते हैं।
भारत में पेटा की प्रमुख अनुराधा साहनी ने यूनीवार्ता से कहा कि देश में चमडे को इंडियन कौंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च में मांस के सह उद्योग की संज्ञा दी गयी है, जबकि वास्तविकता यह है कि निर्यात के रूप में यह मांस की अपेक्षा अधिक मूल्य पाता है।
उन्होंनें कहा कि चमडे की खरीद परिवहन में पशुओं के प्रति क्रूरता और कसाईखाने में उनके साथ दर्दनाक व्यवहार को खुला समर्थन देती है। डेयरी में जब दुधारू गाय दूध देना बंद कर देती है तो उनकी खाल का इस्तेमाल चमडे के रूप में किया जाता है। उनके बछडों को भी अक्सर जहर दे दिया जाता है या भूखा प्यासा रखा जाता है ताकि उनके चमडे की ऊंची कीमत मिल सके।
सुश्री साहनी ने कहा कि तकरीबन सभी पशु जिनको अंततः बेल्ट या जूते का रूप लेने को मजबूर होना पडता है, उन्हें कसाईखाने में अत्यंत क्रूर व्यवहार झेलना पडता है। उन्हें तंग जगहों में बेरहमी से ठूंस कर रखा जाता है तथा बिना बेहेशी की दवा दिये उनके पूछ और सींग काट दिये जाते हैं।
चमडे के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले कई पशु इतने बीमार और जख्मी होते है कि वह चलने की हालत में नहीं होते और उन्हें घसीटकर कसाईखाने तक ले जाना पडता है। चलाने के लिये कईयों की आंखों में मिर्च और तम्बाकू भी झोंक दिया जाता है। उनकी पूंछ को दर्दनाक तरीके से मोड कर तोडा जाता है।
बेहाल चमड़ा उद्योग
चमडे को टूटने से बचाने के लिये कई तरह के रसायन जानवरों को लगाये जाते हैं। उनमें से कुछ काफी जहरीले होते हैं। ऐसे रसायन कसाईखाने में काम करने वालों को भी नुकसान पहुंचा देते हैं।
उन्होंनें कहा कि बेंगलूर और कोलकाता में नगरपालिका के कसाईखानों में जानवरों को बेरहमी से कत्ल करने की जगह पर ले जाते देखा गया। उनको बिखरे खून और अन्य जानवरों के शरीर से निकाली गयी अंतडियों के ढेर पर पटक दिया गया था। जानवर भय से कांप रहे थे और उनकी आंखें फैल गयी थीं। उनकी आंखों से आंसूओं का झरना बह रहा था। वह लाचार होकर अपने साथियों को मरता देख रहे थे और अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे।
Saturday, May 29, 2010
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- एक २२ साल का युवा जिसे देशभक्ति की सोच हासिल है तभी आर्मी ज्वाइन करने की चाह जगी लेकिन फिजिकल में असफल होने के बाद वापस पढ़ रहा है और अब एक नई सोच नेवी ज्वाइन करने की शोक लिखना ,पढना और सोच की गह्रइयो में ख़ुद को झोककर मोती निकाल लाना और इसमें सफल होने की चाह
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