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Wednesday, May 19, 2010

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उत्तर प्रदेश में बहुजन से सर्वजन की ओर जानें का दावा करनें वाली मायावती सरकार इस देश-प्रदेश के हिन्दुओं खासकर सवर्णों (हिन्दू देवी-देवताओं, हिन्दू धर्म ग्रन्थों) को बुरी तरह से अपमानित करनें का अभियान किस तरह चला रही है इसका प्रत्यक्ष नजारा देखना हो तो ‘अम्बेडकर टुडे’ पत्रिका का मई- 2010 का ताजा अंक देखिए जिसके संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के चार-चार वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री शामिल हैं। इस पत्रिका के मई-2010 के अंक का दावा है कि- ‘हिन्दू धर्म’ मानव मूल्यों पर कलंक है, त्याज्य धर्म है, वेद- जंगली विधान है, पिशाच सिद्धान्त है, हिन्दू धर्म ग्रन्थ- धर्म शास्त्र- धर्म शास्त्र- धार्मिक आतंक है, हिन्दू धर्म व्यवस्था का जेलखाना है, रामायण- धार्मिक चिन्तन की जहरीली पोथी है, और सृष्टिकर्ता (ब्रह्या)- बेटी***(कन्यागामी) हैं तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी- दलितों का दुश्मन नम्बर-1 हैं।




उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित जौनपुर निश्चित रूप से सवर्ण बाहुल्य जनपद है। जौनपुर के कुल दस विधानसभा सीटों में से चार पर बसपा के सवर्ण ही चुनाव जीते हैं। इसी जनपद के मछलीशहर विधानसभा सीट से मायावती मंत्रिमण्डल के एक कुख्यात मंत्री सुभाष पाण्डेय चुनाव जीत कर मंत्री पद पर विराजमान हैं। इसी एक तथ्य से यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि पूर्वांचल के इस जनपद के सवर्ण समाज नें खुले दिल से मायावती के ‘बहु प्रचारित सर्वजन’ की राजनीति का स्वीकार किया है। लेकिन हैरतअंगेज तथ्य तो यह भी है कि इसी जौनपुर जिला मुख्यालय से मात्र तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगौतीपुर (शीतला माता मंदिर धाम-चौकियाँ) से एक मासिक पत्रिका ‘अम्बेडकर टुडे’ प्रकाशित होती है जिसके मुद्रक-प्रकाशक एवं सम्पादक हैं कोई डाक्टर राजीव रत्न। डॉ0 राजीव रत्न के सम्पादन में प्रकाशित होनें वाली मासिक पत्रिका का बहुत मजबूत दावा है कि उसे बहुजन समाज पार्टी के संगठन से लेकर बसपा सरकार तक का भरपूर संरक्षण प्राप्त है और यह पत्रिका बहुजन समाज पार्टी के वैचारिक पक्ष को इस देश-प्रदेश के आम आदमी के सामनें लानें के लिए ही एक सोची-समझी रणनीति के तहत प्रकाशित हो रही है।



यही कारण है कि इस पत्रिका के सम्पादक डॉ0 राजीव रत्न अपनी इस पत्रिका के विशेष संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के पांच वरिष्ठ मंत्रियों क्रमशः स्वामी प्रसाद मौर्य (प्रदेश बसपा के अध्यक्ष भी हैं।), बाबू सिंह कुशवाहा, पारसनाथ मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दकी, एवं दद्दू प्रसाद का नाम बहुत ही गर्व के साथ घोषित करते हैं। पत्रिका का तो यहाँ तक दावा है कि पत्रिका का प्रकाशन व्यवसायिक न होकर पूर्ण रूप से बहुजन आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर जन-जन तक पहुँचानें एवं बुद्ध के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए किया जा रहा है। बावजूद इसके पत्रिका के इसी अंक में कानपुर विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद विकास प्रधिकरण, आवास बन्धु-आवास एवं शहरी नियोजन विभाग, नगर निगम- कानपुर, नगर पंचायत- जलालपुर-बिजनौर एवं अन्य कई स्थानों के लाखों रूपयों का विज्ञापन छपा हुआ है। जाहिर है बसपाई मिशन में जी-जान से लगी इस पत्रिका को लाखों रूपयों का विज्ञापन देकर बसपा सरकार ही इसे इसे फलनें-फूलनें का मार्ग सुगमता पूर्वक उपलब्ध करा रही है। इस पत्रिका के कथनी-करनी का एक शर्मनाक तथ्य तो यह भी है कि पत्रिका के सम्पादक जहाँ यह दावा करते थक नहीं रहे हैं कि पत्रिका का उद्देश्य व्यवसायिक नही है, वहीं पत्रिका के इसी अंक के पृष्ठ संख्या- 29 पर सम्पादक की तरफ से एक सूचना प्रकाशित की गई है कि- ‘अम्बेडकर टुडे’ पत्रिका के जिन कार्ड धारकों के कार्ड की वैद्यता समाप्त हो गई है या फिर जो लोग पत्रिका का कार्ड चाहते हैं वे पांच सौ रूपये का बैंक ड्राफ्ट या फिर पोस्टल आर्डर ‘अम्बेडकर टुडे’ के नाम देकर कार्ड प्राप्त कर सकते हैं।



इतना ही नहीं ‘बसपाई मिशन’ को अंजाम तक पहुँचानें में लगी इस पत्रिका के गोरखधंधे एवं इसके चार सौ बीसी का इससे ज्यादा ज्वलंत साक्ष्य और क्या होगा कि- पत्रिका के पृष्ट संख्या- (विषय सूची के पेज पर) पर भारत सरकार का सिम्बल ‘मोनोग्राम’ ‘अशोक का लाट’ छपा हुआ है। जबकि यह जग जाहिर है एवं संविधान में भी यह स्पष्ट है कि- ‘इस देश का कोई भी नागरिक, व्यवसायिक प्रतिष्ठान या फिर संस्था अपनें व्यवसाय या फिर संस्था में भारत सरकार क सिम्बल ‘अशोक के लाट’ का उपयोग नही कर सकता। बावजूद इसके प्रदेश सरकार एवं उसक वरिष्ठ मंत्रियों के संरक्षण में यह पत्रिका खुलेआम उपरोक्त नियमों-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए। ‘अशोक की लाट का प्रयोग धड़ल्ले से कर रही है। बसपाई मिशन में जी-जान होनें से जुटी इस पत्रिका के मई-2010 के पृष्ठ संख्या- 44 से पृष्ठ संख्या-55 (कुल 12 पेज) तक एक विस्तृत लेख ‘धर्म के नाम पर शोषण का धंधा- वेदों में अन्ध विश्वास’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। इस लेख के लेखक कौशाम्बी जनपद के कोई बड़े लाल मौर्य हैं (जिनका मोबाइल नम्बर- 9838963187 है।) इस लेख के कथित विद्वान लेखक बड़ेलाल मार्य नें वेदों में मुख्यतः अथर्व वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद के अनेकोनेक श्लोकों का कुछ इस तरह से पास्टमार्टम किया है कि- यदि आज भगवान वेद व्यास होते और विद्वान लेखक की विद्वता को देखते तो शायद वे भी चकरा जाते।



विद्वान लेखकों नें अथर्ववेद में उल्लिखित-वेदों में वशीकरण, मंत्र, वेदों में हिंसा (ऋग्वेद) आदि का कुछ इस तरह से वर्णन किया है कि लेखक के विचार को पढ़कर ही पढ़ने वाला शर्मशार हो जाए। लेखक का कथन है कि- देवराज इन्द्र बैल का मांस खाते थे (पृष्ठ संख्या- 53)। पृष्ठ संख्या- 53 पर ही दिया गया है कि वैदिक काल में देवताओं और अतिथियों को तो गो मांस से ही तृप्त किया जाता था। पृष्ठ संख्या-54 पर विद्वान लेखक का कथन प्रकाशित है कि- ‘वेदों के अध्ययन से कहीं भी गंभीर चिन्तन, दर्शन और धर्म की व्याख्या प्रतीत नहीं होती। ऋग्वेद संहिता में कहीं से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि यह देववाणी है, बल्कि इसके अध्ययन से पता चलता है कि यह पूरी शैतानी पोथियाँ हैं। आगे कहा गया है कि- वेदों में सुन्दरी और सुरा का भरपूर बखान है, जो भोग और उपभोग की सामग्री है। पत्रिका के इसी अंक के पृष्ठ संख्या- 31 पर मुरैना-मध्यप्रदेश के किसी आश्विनी कुमार शाक्य द्वारा हिन्दुओं खाशकर सवर्णों की अस्मिता, मानबिन्दुओं, हिन्दू मंदिरों, हिन्दू धर्म, वेद, उपनिषद, हिन्दू धर्म ग्रन्थ, रामायण, ईश्वर, 33 करोड़ देवता, सृष्टिकर्ता ब्रह्या, वैदिक युग, ब्राह्यण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, को निम्न कोटि की भाषा शैली में गालियाँ देते हुए किस तरह लांक्षित एवं अपमानित किया गया है इसके लिए देखें पत्रिका में प्रकाशित बॉक्स की पठनीय सामग्री।



उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार द्वारा पालित एवं वित्तीय रूप से पोषित ‘अम्बेडकर टुडे’ पत्रिका के इस भड़काऊ लेख नें प्रदेश में ‘सवर्ण बनाम अवर्ण’ के बीच भीषण टकराव का बीजारोपड़ तो निश्चित रूप से कर ही दिया है। पत्रिका के इस लेख पर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र अस्सी किलोमीटर दूर रायबरेली में 14 मई को अनेक हिन्दू संगठनों नें कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पत्रिका की होली जलाई जिस पर जिला प्रशासन नें पूरे इलाके को पुलिस छावनी के रूप में तब्दील कर दिया था। रायबरेली में स्थिति पर काबू तो पा लिया गया है पर यदि इसकी लपटें रायबरेली की सीमा से दूर निकली तो इस पर आसानी से काबू पाना मुश्किल होगा।



इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि-2007 के विधानसभा चुनाव के समय बसपा सुप्रिमों मायावती जिस ‘सोशल इन्जीनियरिंग’ कथित ‘सर्वजन’ के नारे के दम पर सवर्णों को आगे करके स्पष्ट बहुमत हाशिल कर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थीं। उनका सर्वजन का वह फार्मूला लोकसभा चुनाव आते-आते फुस्स होकर रह गया। राजनीति के चौसर की मंजी खिलाड़ी मायावती को अंततः यह समझानें में देर नहीं लगी कि- 2007 के विधानसभा के जिस चुनाव में दलित-ब्राह्यण गठजोड़ के कारण प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ उनकी सरकार सत्तारूढ़ हुई वहीं गठजोड़ लोकसभा चुनाव आते-आते बुरी तरह से बिखर गया। कारण स्पष्ट था कि सवर्णाें के साथ मायावती की नजदीकियों के कारण दलित बसपा से दरकिनार हो कांग्रेस के पाले में खिसक गया था। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए मायावती नें अंततः एक बार फिर दलितों की ओर रूख करते हुए सवर्णों से किनारा करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में मायावती नें सोशल इन्जीनियरिंग के कथित जनक सतीश मिश्र को सत्ता के गलियारे से दूर तक दलितों को यह संदेश देनें का यह अथक प्रयास किया है कि- दलितों को छोड़कर राजनीति में टिके रहना बसपा के लिए असंभव है। बसपा का दलितों के प्रति पुनः उमड़ा प्रेम तथा सवर्णों को किनारे करनें की रणनीति एवं दलित आंदोलन में जुटी उक्त पत्रिका के संयुक्त प्रयास का सूक्ष्मतः अवलोकन पर अन्ततः यह स्पष्ट होनें में देर नहीं लगती कि मायावती सरकार का सर्वजन का नारा बुरी तरह से फ्लाप हो गया है तथा उसके मन में दलितों के प्रति मोह एक बार पुनः हिलोरें मारनें लगा है।



उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए अंततः यहाँ यह कहना गलत न होगा कि श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज नें सही लिखा है- ‘उधरे अंत न होय निबाहू। कालिनेमि जिमि रावन राहू’। अर्थात- कोई राक्षस भले ही सन्त भेष धारण कर लोगों को दिग्भ्रमित करनें का दुष्चर्क रचे, कुछ समय तक वह भले ही अपनें स्वांग में कामयाब रहे पर बहुत जल्द ही उसका राक्षसी स्वरूप लोगों के सामनें आ ही पाता है। कुछ इसी तरह की लोकोक्ति आम जनमानस में प्रचलित हैं कि- लोहे पर सोनें की पालिस कर कुछ समय के लिए लोहे को सोना प्रदर्शित कर लिया जाय पर सोनें का रंग उतरते ही लोहा पुनः अपनें असली स्वरूप में आ ही जाता है। उपरोक्त दोनों ही तर्क उत्तर प्रदेश में तथाकथित ‘सर्वजन सरकार’ की मुखिया मायावती एवं उनके मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों पर अक्षरशः फिट बैठ रही है।



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एक २२ साल का युवा जिसे देशभक्ति की सोच हासिल है तभी आर्मी ज्वाइन करने की चाह जगी लेकिन फिजिकल में असफल होने के बाद वापस पढ़ रहा है और अब एक नई सोच नेवी ज्वाइन करने की शोक लिखना ,पढना और सोच की गह्रइयो में ख़ुद को झोककर मोती निकाल लाना और इसमें सफल होने की चाह